चाणक्य नीति के अनुसार सच्चे मित्र की ऐसे करें पहचान…नहीं मिलेगा जीवन में कभी धोखा

रिपोर्ट मनप्रीत सिंह

 


रायपुर छत्तीसगढ़ विशेष : आचार्य चाणक्य ने मनुष्य के जीवन के रहस्यों को सुलझाने के लिए नीतियां बनाईं. इन नीतियों के बारे में कहा जाता है कि जिसने इन नीतियों का पालन किया उसकी सफलता निश्चित है. आचार्य चाणक्य ने धर्म, न्याय, शांति, सुरक्षा और राजनीति समेत कई विषयों पर नीतियां निर्धारित की हैं. आइए जानते हैं चाणक्य नीति के मुताबिक सच्चे मित्र की पहचान कैसे हो…


1. भूलकर भी ऐसे मित्र का साथ नहीं देना चाहिए जो सामने से आपकी प्रशंसा करता है, मधुर व्यवहार करता है और आपके मन को खुश करने वाली बातें करता है, लेकिन मौका देखकर आपके पीछे बुराइयां करता है और आपके काम बिगाड़ देता है. ऐसे मित्र दुश्मन से भी ज्यादा खतरनाक होते हैं. इसलिए ऐसे मित्रों से दूर रहना चाहिए.


2. जिसे आप सबसे अच्छा मित्र मानते हैं उस पर भी आंख बंद करके विश्वास नहीं करना चाहिए. क्योंकि अगर आप अपने पक्के दोस्त के सामने अपने सभी सीक्रेट चीजों का खुलासा कर देते हैं तो इस बात की संभावना बढ़ जाती है कि रिश्तों में खटास आने पर या मित्रता खत्म होने पर आपके सभी सीक्रेट्स को सबसे सामने रख सकता है.


3. दोस्ती हमेशा बराबर वालों से करनी चाहिए. अगर आप अपने बराबर वालों से दोस्ती नहीं करते हैं और अपने से नीचे या ऊपर के स्तर के लोगों के साथ दोस्ती करते हैं तो इस रिश्ते में दरार के आने की संभावना ज्यादा होती है. निर्धन का कोई मित्र नहीं होता जबकि धनवान व्यक्ति के आस पास मित्र के रूप में लोगों की भरमार होती है. यह वह स्थिति होती है जब धनवान यह समझ कर खुश होता है कि उसके काफी मित्र हैं और उसके दोस्त इसलिए खुश होते हैं कि धनवान उनके काम में मदद करेगा. ऐसें लोगों की पहचान करें.


4. दुख के समय में जो व्यक्ति निस्वार्थ भाव से आपका साथ दे वही आपका सच्चा मित्र हो सकता है. अगर कोई मित्र संकट में, बीमारी में, दुश्मन के हमला करने पर, राज दरबार में और शमशान में आपके साथ खड़ा रहता है तो वो आपका सच्चा मित्र है. यही वो समय होते हैं जब आप अपनी मित्रता को परखते हैं.


5. विपरीत स्वभाव वाले दो व्यक्तियों में कभी भी आप स में दोस्ती नहीं हो सकती. अगर ऐसा होता है तो वह रिश्ता दिखावे का होता है. क्योंकि सांप और नेवले की, बकरी और बाघ की, हाथी और चींटी की व शेरनी और कुत्ते की कभी दोस्ती नहीं हो सकती. इसी प्रकार सज्जन और दुर्जन में भी दोस्ती असंभव है.


6. अपने संगत का खयाल रखना आवश्यक है. क्योंकि संगत का असर अवश्य होता है फिर चाहे वो अच्छा हो या फिर बुरा. धीरे-धीरे ही सही लेकिन ज्यादा समय उनके साथ बिताने पर आपके दोस्तों वाले गुण आपके अंदर आने लगते हैं. इसलिए दोस्ती करते वक्त इस बात का ध्यान रखें कि आपके दोस्तों की संगत आपके अनुकूल हो.


7. स्वार्थ के बल पर की हुई दोस्ती, हमेशा दुश्मनी का कारण बन जाती है. इसलिए समझदार व्यक्ति को चाहिए कि वह हमेशा मित्रों के चयन से पहले उसे जांच परख ले तथा खूब सोच विचार कर ले क्योंकि एक बार यदि दोस्ती गाढ़ी हो गई तो उसके बाद उसके परिणाम और दुष्परिणाम सामने आने लगते हैं.


8. वाकई में अगर आपको मित्रता निभानी है तो ऐसी निभाई जाए जैसे कृष्ण और सुदामा की, कृष्ण और अर्जुन की, विभीषण और राम की बताई जाती है. ऐसे में मित्र बनाते समय उसके गुण और दोष को जान लें. वो ऐसा हो जो आपके स्वभाव से मेल खाए, संकट काल में, बिमारी में, अकाल में और कष्ट में आपके कदम से कदम मिलाकर चले.