खारुन नदी तट के पुरातात्विक स्थलों से बनेगी छत्तीसगढ़ की विश्व में पहचान….!!


रिपोर्ट मनप्रीत सिंह


रायपुर छत्तीसगढ़ विशेष :  छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से महज कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर बह रही खारुन नदी के किनारे कुछ पुरातात्विक, ऐतिहासिक स्थल ऐसे हैं, जो भविष्य में छत्तीसगढ़ को विश्वभर में पहचान दिलाएंगे। इन गांवों में कौही, तरीघाट, केसरा, जमराव, उफरा, पहंदा, बठेना, असोगा, आगेसरा, गुढ़ियारी झीट शामिल हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एसीआइ) ने बड़ी उम्मीद से संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग को खुदाई करने का लाइसेंस दिया है। इनमें से तरीघाट, रीवा एवं जमराव इन तीन ऐतिहासिक स्थलों की खुदाई में हजारों साल पुराना इतिहास मिलने की संभावना है, पिछले साल हुई खुदाई में कई महत्वपूर्ण चीजें हासिल भी हुई हैं।



स्थान- आरंग के समीप ग्राम रीवा


इतिहास- 1800 साल पुराना


राजधानी से 25 किलोमीटर दूर आरंग के समीप स्थित लखौली ग्राम के निकट कोल्हान नाला के बाएं तट पर स्थित है। इस पुरास्थल का प्रारंभिक उल्लेख अलेक्जेंडर कनिंघम के प्रतिवेदन में मिलता है। 2018-19 में यहां उत्खनन शुरू हुआ।


ग्राम रीवा में खुदाई के दौरान 18 सौ वर्ष पुराने ईटें, सोने-चांदी के सिक्के, मणिकणिकाएं भी मिली थीं। ऐसा अनुमान लगाया गया कि यह छठवीं सदी ईसवी में महत्वपूर्ण प्रशासनिक तथा व्यापारिक स्थल था। यहां सोने-चांदी के सिक्के से लेकर मणिकणिकाएं बनाने का काम होता रहा होगा। पुरातत्ववेत्ता पद्मश्री अरूण शर्मा ने का कहना है कि यहां 40 टीले मिले हैं। यह एक बड़ा संपन्न शहर था, जो बौध स्तूप की तरह हैं।


उत्खनन से प्राप्त


0 उत्खनन में विभिन्न कालों से संबद्ध सोने, चांदी, तांबे के सिक्के, मिट्टी की मुहरें, विभिन्न प्रकार के मनके, हाथीदांत, कांच की चूड़ियां, आभूषण, मूण्मूर्तियां, पाषाणखण्ड, पात्रखण्ड आदि प्राप्त हुए हैं।


0 रियासतकाल, मराठाकाल 15वीं से 19वीं सदी के आवासीय संरचना, दीवारें, लाल एवं काले रंग के मृदभाण्ड हैं।


0 कलचुरि एवं उत्तर कलचुरि काल, 11वीं से 15वीं सदी ईस्वी के सोने, चांदी के सिक्के, मनके एवं पात्र खण्ड मिले हैं।

0 शरभपुरीय, पाण्डुवंशी काल, 5वीं से 8वीं सदी ईस्वी के सोने के सिक्के, ताम्र वस्तुएं, सिलबट्टे


0 कुषाण कालीन, पहली से तीसरी सदी ईस्वी के तांबे के सिक्के, पकाई मिट्टी के मूर्तिखण्ड, मनके एवं पात्र खण्ड


0 सातवाहन काल, ईसा पूर्व पहली सदी के तांबे के चौकोर सिक्के, अभिलिखित मुहर, मनके, पात्रखंड


0 मौर्यकाल, ईसा पूर्व दूसरी, पहली सदी के मृत्तिका स्तूप के अवशेष


0 चांदी की आहत मुद्रा, शरभपुरीय शासक क्रमादित्य का सोने का ठप्पांकित उभारदार सिक्का


0 रतनपुर के कलचुरि शासक रत्नदेव का सोने का सिक्का


संस्कृति विभाग के सहायक संचालक राहुल सिंह एवं पुरातत्ववेत्ता अरूण कुमार शर्मा बताते हैं कि चीनी यात्री ह्‌वेनसांग के दक्षिण कोशल के यात्रा-प्रसंग में वर्णित राजधानी के दक्षिण में अशोक द्वारा निर्मित स्तूप का रीवा के स्तूप के साथ समीकृत होने की संभावना है। यह स्तूप 25 मीटर परिधि में गोलाकार निर्मित है। इसमें पूर्व तथा पश्चिम दिशा में प्रवेश पथ रहा है। बजरीली मिट्टी को कूट-कूट कर स्तूप के मुख्य अण्डाकार भाग का निर्माण किया गया है। इसमें स्तूप के आधार भाग को सुदृढ़ रखने के लिये ईंटों का प्रयोग किया गया है, जो मौर्य तथा शुंगकाल में भी प्रचलित रहे हैं।


ग्राम जमराव


स्थान- रायपुर से 15 किलोमीटर, दुर्ग जिले के पाटन तहसील में


इतिहास- दो हजार साल पुराना


जमराव गांव खारुन नदी के किनारे बाएं तट पर बसा हुआ है। 2014-15 में संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग ने जमराव के टीलों की रिपोर्ट तैयार की थी। पिछले साल 2018-19 में खुदाई शुरू हुई। यहां कुषाण कालीन सिक्के, मनके, मूर्तियां मिलीं।


उत्खनन से प्राप्त


0 काल-पंचम रियासत काल 17वीं से 19वीं सदी ईस्वी की निर्मित दीवारें, लाल रंग और काले रंग के पात्रखण्ड


0 चतुर्थ कलचुरि काल 11वीं से 16वीं सदी ईस्वी की रंगबिरंगी चूडियां, मनके एवं पात्र खण्ड


0 गुप्त-वाकाटक एवं गुप्तोत्तर काल चौथी से आठवी सदी ईस्वी बलराम-संकर्षण, कुबेर, लज्जा-गौरी, एकमुख लिंग, श्रीवत्स अंकन युक्त सिंह प्रतिमा की पाषाण मूर्तियां, पायेदार एवं सपाट तल सिलबट्टे, मनके, शंख की चूडियां

0 कुषाण काल पहली से तीसरी सदी ईस्वी के तांबे के गोल सिक्के, अभिलिखित मुद्रांक, यक्ष यक्षिणी की मृण्मूर्तियां, मनके एवं पात्र खण्ड


0 सातवाहन काल पहली सदी ईसा पूर्व से पहली सदी ईस्वी तांबे के चौकोर सिक्के, अभिलिखित मुद्रा, यक्ष-यक्षिणी की मृण्मूर्तियां, मनके पात्र, परम्परा एवं पात्र खण्ड


उत्खनन में चूल्हे, आग जलाने और भोज पकाने के प्रमाण जैसे राख और जली हुई मिट्टी की परत, मिट्टी कूट कर बनाई गई फर्श, फर्श पर मिट्टी के बर्तन प्राप्त हुए हैं। इससे अनुमान है कि यह स्थल खारून नदी से जुड़े व्यापार मार्ग का एक प्रमुख पड़ाव था।


तरीघाट


स्थान- राजधानी से 15 किलोमीटर दूर


इतिहास- तीन हजार साल पुराना


तरीघाट में वर्ष 2012-13 में छत्तीसगढ़ संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग ने खुदाई की थी। यहां 3 हजार साल पुराना इतिहास मिला। इसमें प्रमुख उपलब्धि टेराकोटा के जिराफ का मिलना रहा। जिराफ के चित्र भीमबेठका की गुफा में और ओडिशा स्थित कोणार्क के सूर्य मंदिर में भी अंकित है। यहां इंडो ग्रीक एवं इंडो सिथियन सिक्के भी मिले। पुरातत्ववेत्ता जेआर भगत बताते हैं कि यह अनुमान लगाया जा रहा है कि तरीघाट एक बड़ा अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक केंद्र रहा होगा। इस जमीन में अभी बहुत कुछ दफन है।


उत्खनन से प्राप्त


0 सामवेद लिखी मुहर, इसमें चार अक्षर और छह बिंदु चिन्ह बने हुए हैं। इसमें लिखे अक्षर ब्राह्मी और भाषा प्राकृत है। मुहर की चौड़ाई ढाई सेंटीमीटर और लंबाई चार सेंटीमीटर है।


0 घट स्वरूप माला, अमलक, बटम, सिलिन्डीकल, कोनीकल, हाथी दांत की माला, इंडो ग्रीक सिक्का, अलग-अलग हेयर स्टाइल वाली महिलाओं की प्रतिमा, टेराकोटा की प्रतिमा।


0 चार कमरा, एक बरामदा, चारों कमरे में एक-एक चूल्हा, मिट्टी के बड़े बर्तन, मणिकाएं, सेमिप्रेसियस स्टोन, माला बनाने के औजार।

2500 साल पहले ग्रीक से आते थे कारोबारी


अनुमान है कि तरीघाट, चंद्रगुप्त मौर्य के काल का है जहां ग्रीक से भी कारोबारी आते थे। यह भी अनुमान है कि ढाई हजार साल पहले माला बनाने का केंद्र रहा होगा। सामवेद मुहर का मिलना दर्शाता है कि 2500 साल पहले सामवेद प्रचलन में था।



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