इजरायल की कृषि पद्धति का प्रयोग कर दुर्ग जिले के धमधा ब्लॉक में एशिया का सबसे बड़ा सीताफल फॉर्म तैयार किया गया


रिपोर्ट मनप्रीत सिंह 


 रायपुर छत्तीसगढ़ विशेष : दुर्ग जिले के धमधा ब्लॉक में एशिया का सबसे बड़ा सीताफल फॉर्म तैयार किया गया है जहां जैविक और इजराइली पद्धति से खेती की जा रही है यह सीताफल फॉर्म जिले की धमधा ब्लॉक के धौराभाठा गांव के लगभग 200 एकड़ की भूमि पर बनाया गया है। जहां 500 एकड़ में 20 प्रकार के फलों की खेती की जा रही है। यहां के फलों की मांग मुम्बई हैदराबाद और दिल्ली जैसे राज्यो में बनी हुई है। सब्जियों के साथ साथ धमधा अब फलों के उतपादन क्षेत्र के रूप में भी पहचान बना रहा है। दुर्ग जिले से महज 40 किलोमीटर दूर धमधा ब्लॉक के धौराभाठा गांव है। लगभग 500 एकड़ के इस फॉर्म में करीब 20 प्रकार के फलों के पेड़ लगे है। इसमें 180 एकड़ जमीन में केवल सीताफल फैला है। सीताफल के पेड़ की आयु 90 साल होती है। इस प्रकार यह 3 पीढिय़ों के लिए निवेश कर भूल जाने की तरह है। जिसका हर सीजन में आप लाभ ले सकते हैं। इसके मार्केट के लिए कोई समस्या नही है इसका बाजार भी आसानी से उपलब्ध है। फॉर्म के मैनेजर राकेश धनगर ने बताया कि एक गिर गाय से निकले गोबर से 10 एकड़ में जैविक खेती की जा सकती है। यहां आर्गेनिक खाद, कीटनाशक बनाने के लिए यूनिट तैयार की गई है। इससे इजरायल की पद्धति से आर्गेनिक खाद 500 एकड़ तक फैले खेत में पहुंचाया जाता है। यह पूरी तरह से ऑटोमेटेड है। अर्थात आप पानी और खाद की मात्रा सेट कर चले जाइये, 14 दिनों तक इसे देखने की जरूरत नहीं। यहां की जैविक खेती देश की जानी मानी संस्था अपेडा से मान्यता प्राप्त है, और इसे आईएसओ सर्टिफिकेट मिल चुका है। जो इसके उत्पादों को विश्वसनीयता प्रदान करती है। विभिन्न मदों में लगभग 6 करोड़ की लागत से किसान ने इसे तैयार किया है।


वहीं प्रदेश के कृषि विभाग ने इसमें 93 लाख रुपये की सब्सिडी शासन की ओर से दी गई है। फॉर्म में पानी की सतत सप्लाई रहे, इसके लिए लगभग 10 एकड़ में 2 तालाब बनाए गए हैं। इसके लिए शासन की ओर से 24 लाख रुपये की सब्सिडी मिली। यह वाटर हार्वेस्टिंग का भी शानदार मॉडल साबित हुआ और नजदीक के 10 गांवों में इससे जलस्तर काफी बढ़ गया। इसके पास की अधिकतर जमीन भाठा जमीन है। और यह खलिस्तान की तरह लगता है। ड्रैगन फ्रूट और स्वीट लेमन जैसे एन्टी ऑक्सीडेंट्स से भरपूर फलों के की खेती भी की जा रही है। सीजन में हर दिन लगभग 8 टन उत्पादन होता है जो दिल्ली, हैदराबाद जैसे शहरों में जाता है। इनके 35 एकड़ जमीन में थाई प्रजाति के अमरूद लगे हैं। इसकी विशेषता यह है कि इसमें शुगर कम है और काफी दिनों तक टिक जाता है।मुख्य मंत्री भूपेश बघेल के क्रेता विक्रेता सम्मेलन के बाद यहां 20 देशों के प्रतिनिधियों ने दौरा किया और फलों के लिए एग्रीमेंट साइन किया है। मैनेजर राकेश ने बताया कि हमारे 5 वेंडर मुम्बई के सीएसटी में हैं। जिनसे तुरंत माल खप जाता है। सीजन में हर दिन 10 टन अमरूद का उत्पादन होता है। और पूरे सीजन में लगभग 500 टन। खास तकनीक से इन्हें सहेजा जाता है। इसकी गुणवत्ता जांच यहां भी होती है, और नागपुर स्थित लैब में भी। खजूर के लगभग 500 पेड़ हैं। जिनसे सीजन में 10 टन खजूर उत्पादित होता है। इस साल यहाँ 60 एकड़ में 550 टन एप्पल बेर का उत्पादन किया गया है।


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