अबूझमाड़ में इमली के बदले आलू-प्याज और तेल की मांग




रिपोर्ट मनप्रीत सिंह


रायपुर छत्तीसगढ विशेष : सदियों पुरानी परंपरा वस्तु विनिमय का दौर फिर से शुरू ।  नक्सल प्रभावित कुतुल में लॉकडाउन के दौरान सदियों पुरानी परंपरा वस्तु विनिमय का दौर फिर से शुरू हो गया है। लॉकडाउन के दौरान ये हालात उत्पन्न हुए हैं। चिरौंजी के बदले नमक लेने की प्रथा कई सालों तक चली। इसके बाद नगद लेनदेन की व्यवस्था बनी थी। लेकिन बीते कुछ सप्ताह से ग्रामीण इमली के बदले खाद्य सामग्री की मांग कर रहे हैं। अबूझमाड़ की बदलती हुई स्थिति का जायजा लेने ग्राउंड जीरो पर पहुंचे नईदुनिया प्रतिनिधि के सामने ग्रामीण अर्थव्यवस्था की जो तस्वीरें सामने आई, वह हैरान कर देने वाली है। कुतुल इलाके में लॉकडाउन के दौरान जारी नक्सलियों की बंदिश के बीच प्रशासन और व्यापारियों की बेबसी ग्रामीणों की गले की फांस बन गई है। बीते कई दिनों से कुतुल में दैनिक उपयोग की सामग्रियों के लिए ग्रामीणों के बीच हाहाकार मचा हुआ है। कई सप्ताह से कुतुल के बाजार वीरान पड़े हैं। राशन का इंतजाम तो रामकृष्ण मिशन आश्रम के माध्यम से सरकारी उचित मूल्य की दुकान से हो जा रहा है लेकिन इसके अलावा ग्रामीणों को आलू, प्याज, तेल,साबुन और खाने का मसाला समेत अन्य सामग्रियों के लिए काफी जद्दोजहद करना पड़ रहा है। कई दिनों से वनोपज संग्रहण कर ग्रामीण व्यापारियों और सरकारी खरीदी करने वाली महिला समूह की राह ताक रहे हैं। सरकार के द्वारा वन विभाग और महिला स्व सहायता समूह के जरिए ग्रामीणों से वनोपज की खरीदी अमूमन पूरे जिले में की जा रही है लेकिन माड़ की इस हिस्से को नक्सलियों के खौफ की वजह से कोरा छोड़ दिया गया है। जिसकी वजह से माड़िया परिवार अपने वनोपजों की बिक्री नहीं कर पा रहे है।


हाट बाजार बंद होने से ग्रामीणों की परेशानी बढ़ गई है। बाजार माड़िया परिवार के जीवन का सबके अहम हिस्सा होता है। माड़ के इस बाजार में करीब 50 किमी के दायरे में बसे माड़िया परिवार के लोगों की जिंदगी चलती है। सरकारी निर्माण कार्य के साथ रोजगार गारंटी के कार्य माड़ के अंदरूनी गांवो में नहीं के बराबर चल रहे है। ऐसी स्थिति में बाजार के गल्ला व्यापारियों के पास वनोपज की बिक्री कर माड़िये अपने घरों के चूल्हे जलाते आ रहे है।कोरोना वायरस संक्रमण के दौरान अबूझमाड़ में जारी गांव बन्दी के बीच विशेष संरक्षित अबूझमाड़िया जनजाति के लोगों ने बताया कि इमली समेत अन्य वनोपजों के बदले गांव में उन्हें दैनिक उपयोग की सामग्री मिल जाने से उनकी सबसे बड़ी समस्या खत्म हो जाएगी। ग्रामीणों का कहना है कि ओरछा, कोहकामेटा और सोनपुर में वनोपजों की सरकारी खरीदी हो रही है तो कुतुल समेत माड़ के अन्य गांव के साथ परहेज़ क्यों किया जा रहा है।गौरतलब है कि नक्सलियों के द्वारा कोरोना संक्रमण को लेकर हिंदी और गोंडी भाषा में पर्चा जारी कर ग्रामीणों के लिए गाइडलाइंस जारी किया गया है। हाट बाजारों में खरीददारी करने के दौरान विशेष सावधानी बरतने की बात कहते नक्सलियों के द्वारा शारीरिक दूरी बनाये रखने की अपील की गई है। कुतुल के बाजार स्थल में पेड़ो में कई नक्सली पर्चा चिपकाया गया है। वहीं दूसरी ओर वन विभाग के कर्मचारी रुपये लूट लेने की आशंका जताकर माड़ जाना नहीं चाह रहे हैं।



 



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