सिख गुरु- दल भंजन योद्धा,मीरी पीरी के मालिक, बंदी छोड़ दाता श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी(छठवें गुरु)के प्रकाश पर्व पर छत्तीसगढ़ विशेष का विशेष लेख-जीवन परिचय-प्रकाश पर्व की बधाई

Report manpreet singh 


Raipur chhattisgarh VISHESH : छत्तीसगढ़ विशेष का विशेष लेख-जीवन परिचय-प्रकाश पर्व की बधाई , सिख पंचम पातशाह श्री गुरु अर्जुन देव जी एवम माता गंगा जी के घर गुर की वडाली पिंड अमृतसर साहिब के घर सिख धर्म के छठे नानक के रूप में गुरु हरगोबिंद साहिब जी का प्रकाश(अवतार) हुआ।



गुरू हरगोबिन्द सिखों के छठें गुरू थे। साहिब की सिक्ख इतिहास में गुरु अर्जुन देव जी के सुपुत्र गुरु हरगोबिन्द साहिब की दल-भंजन योद्धा कहकर प्रशंसा की गई है। गुरु हरगोबिन्द साहिब की शिक्षा दीक्षा महान विद्वान् भाई गुरदास की देख-रेख में हुई। गुरु जी को बराबर बाबा बुड्डा जी का भी आशीर्वाद प्राप्त रहा। छठे गुरु ने सिक्ख धर्म, संस्कृति एवं इसकी आचार-संहिता में अनेक ऐसे परिवर्तनों को अपनी आंखों से देखा जिनके कारण सिक्खी का महान बूटा अपनी जडे मजबूत कर रहा था।


विरासत के इस महान पौधे को गुरु हरगोबिन्द साहिब ने अपनी दिव्य-दृष्टि से सुरक्षा प्रदान की तथा उसे फलने-फूलने का अवसर भी दिया। अपने पिता श्री गुरु अर्जुन देव की शहीदी के आदर्श को उन्होंने न केवल अपने जीवन का उद्देश्य माना, बल्कि उनके द्वारा जो महान कार्य प्रारम्भ किए गए थे, उन्हें सफलता पूर्वक सम्पूर्ण करने के लिए आजीवन अपनी प्रतिबद्धता भी दिखलाई।



 


गुरु हर गोबिन्द जन्म 


गुरू की वडाली, अमृतसर, पंजाब सूबा, 


मृत्यु कीरतपुर साहिब, भारत


अन्य नाम छट्ठे बादशाह


प्रसिद्धि कारण अकाल तख़त का निर्माण युद्ध में शामिल होने वाले पहले गुरू ,सिखों को युद्ध कलाएं के लिये प्रेरित करना ,मीरी पीरी की स्थापना,इन लड़ाइयों में भागिदारी:रोहिला की लड़ाईकरतारपुर की लड़ाईअमृतसर की लड़ाई (१६३४)हरगोबिंदपुर की लड़ाईगुरुसर की लड़ाईकीरतपुर की लड़ाईकीरतपुर साहिब की स्थापना


जीवनसाथी माता नानकी, माता महादेवी और माता दामोदरी


बच्चे बाबा गुरदिता, बाबा सूरजमल, बाबा अनि राय, बाबा अटल राय, गुरु तेग बहादुर और बीबी बीरो


माता-पिता गुरु अर्जन देव व माता गंगा


बदलते हुए हालातों के मुताबिक गुरु हरगोबिन्द साहिब ने शस्त्र एवं शास्त्र की शिक्षा भी ग्रहण की। वह महान योद्धा भी थे। विभिन्न प्रकार के शस्त्र चलाने का उन्हें अद्भुत अभ्यास था। गुरु हरगोबिन्द साहिब का चिन्तन भी क्रान्तिकारी था। वह चाहते थे कि सिख कौम शान्ति, भक्ति एवं धर्म के साथ-साथ अत्याचार एवं जुल्म का मुकाबला करने के लिए भी सशक्त बने। वह अध्यात्म चिन्तन को दर्शन की नई भंगिमाओं से जोडना चाहते थे।


गुरु- गद्दी संभालते ही उन्होंने मीरी एवं पीरी की दो तलवारें ग्रहण की। मीरी और पीरी की दोनों तलवारें उन्हें बाबा बुड्डा जी ने पहनाई।


यहीं से सिख इतिहास एक नया मोड लेता है। गुरु हरगोबिन्द साहिब मीरी-पीरी के संकल्प के साथ सिख-दर्शन की चेतना को नए अध्यात्म दर्शन के साथ जोड देते हैं।



अकाल तख्त की सृजना


इस प्रक्रिया में राजनीति और धर्म एक दूसरे के पूरक बने। गुरु जी की प्रेरणा से श्री अकाल तख्त साहिब का भी भव्य अस्तित्व निर्मित हुआ। देश के विभिन्न भागों की संगत ने गुरु जी को भेंट स्वरूप शस्त्र एवं घोडे देने प्रारम्भ किए। अकाल तख्त पर कवि और ढाडियोंने गुरु-यश व वीर योद्धाओं की गाथाएं गानी प्रारम्भ की। लोगों में मुगल सल्तनत के प्रति विद्रोह जागृत होने लगा।


बन्दी छोड़ दाता


गुरु हरगोबिन्द साहिब नानक राज स्थापित करने में सफलता की ओर बढने लगे। जहांगीर ने गुरु हरगोबिन्दसाहिब को ग्वालियर के किले में बन्दी बना लिया। इस किले में और भी कई राजा, जो मुगल सल्तनत के विरोधी थे, पहले से ही कारावास भोग रहे थे। गुरु हरगोबिन्द साहिब लगभग तीन वर्ष ग्वालियर के किले में बन्दी रहे। महान सूफी फकीर मीयांमीर गुरु घर के श्रद्धालु थे। जहांगीर की पत्‍‌नी नूरजहां मीयांमीर की सेविका थी। इन लोगों ने भी जहांगीर को गुरु जी की महानता और प्रतिभा से परिचित करवाया। बाबा बुड्डाव भाई गुरदास ने भी गुरु साहिब को बन्दी बनाने का विरोध किया। जहांगीर ने केवल गुरु जी को ही ग्वालियर के किले से आजाद नहीं किया, बल्कि उन्हें यह स्वतन्त्रता भी दी कि वे 52राजाओं को भी अपने साथ लेकर जा सकते हैं। इसीलिए सिख इतिहास में गुरु जी को बन्दी छोड़ दाता कहा जाता है। ग्वालियर में इस घटना का साक्षी गुरुद्वारा बन्दी छोड़ है।



अपने जीवन मूल्यों पर दृढ रहते गुरु जी ने शाहजहां के साथ चार बार टक्कर ली। वे युद्ध के दौरान सदैव शान्त, अभय एवं अडोल रहते थे। उनके पास इतनी बडी सैन्य शक्ति थी कि मुगल सिपाही प्राय: भयभीत रहते थे। गुरु जी ने मुगल सेना को कई बार कड़ी पराजय दी।


शेर मार के जहांगीर की जान बचाना


एक बार जहांगीर गुरु जी को लेकर जंगल गया जंगल मे बब्बर शेर की गर्जना हुई जहांगीर के सैनिक जंगल मे छिप गए शेर ने जहांगीर पर हमला कर दिया तो गुरु जी ने बब्बर शेर को पछाड़ कर मार दिया और जहांगीर की जान बचाई


गुरु हरगोबिन्दसाहिब ने अपने व्यक्तित्व और कृत्तित्वसे एक ऐसी अदम्य लहर पैदा की, जिसने आगे चलकर सिख संगत में भक्ति और शक्ति की नई चेतना पैदा की। गुरु जी ने अपनी सूझ-बूझ से गुरु घर के श्रद्धालुओं को सुगठित भी किया और सिख-समाज को नई दिशा भी प्रदान की।



अकाल तख्त साहिब सिख समाज के लिए ऐसी सर्वोच्च संस्था के रूप में उभरा, जिसने भविष्य में सिख शक्ति को केन्द्रित किया तथा उसे अलग सामाजिक और ऐतिहासिक पहचान प्रदान की। इसका श्रेय गुरु हरगोबिन्दसाहिब को ही जाता है।


गुरु हरगोबिन्द साहिब जी बहुत परोपकारी योद्धा थे। उनका जीवन दर्शन जन-साधारण के कल्याण से जुडा हुआ था। यही कारण है कि उनके समय में गुरमति दर्शन राष्ट्र के कोने-कोने तक पहुंचा। श्री गुरु ग्रन्थ साहिब के महान संदेश ने गुरु-परम्परा के उन कार्यो को भी प्रकाशमान बनाया जिसके कारण भविष्य में मानवता का महा कल्याण होने जा रहा था।



गुरु जी के इन अथक प्रयत्‍‌नों के कारण सिख परम्परा नया रूप भी ले रही थी तथा अपनी विरासत की गरिमा को पुन:नए सन्दर्भो में परिभाषित भी कर रही थी।


गुरु हरगोबिन्दसाहिब की चिन्तन की दिशा को नए व्यावहारिक अर्थ दे रहे थे। वास्तव में यह उनकी आभा और शक्ति का प्रभाव था। गुरु जी के व्यक्तित्व और कृत्तित्वका गहरा प्रभाव पूरे परिवेश पर भी पडने लगा था।


गुरु हरगोबिन्दसाहिब जी ने अपनी सारी शक्ति हरमन्दिर साहिब व अकाल तख्त साहिब के आदर्श स्थापित करने में लगाई। गुरु हरगोबिन्द साहिब प्राय: पंजाब से बाहर भी सिख धर्म के प्रचार हेतु अपने शिष्यों को भेजा करते थे।


गुरु हरगोबिन्द साहिब ने सिक्ख जीवन दर्शन को सम-सामयिक समस्याओं से केवल जोडा ही नहीं, बल्कि एक ऐसी जीवन दृष्टि का निर्माण भी किया जो गौरव पूर्ण समाधानों की संभावना को भी उजागर करता था। सिख लहर को प्रभावशाली बनाने में गुरु जी का अद्वितीय योगदान रहा।


गुरु जी कीरतपुर साहिब में ज्योति-जोत समाए। गुरुद्वारा पातालपुरी गुरु जी की याद में आज भी हजारों व्यक्तियों को शान्ति का संदेश देता है।


भाई गुरुदास ने गुरु हरगोबिन्दसाहिब की गौरव गाथा का इन शब्दों में उल्लेख किया है:


पंज पिआले पंजपीर छटम्पीर बैठा गुर भारी,


अर्जुन काया पलट के मूरत हरगोबिन्द सवारी,


चली पीढी सोढियां रूप दिखावनवारो-वारी,


दल भंजन गुर सूरमा वडयोद्धा बहु-परउपकारी॥ 


 


“दाता बन्दी छोड़” अते माता भागभरी जी ने दिया 52 कलियों का चोला


गुरु हरगोबिंद साहिब जी जब कश्मीर की यात्रा पर थे तब उनकी मुलाकात माता भाग्भरी से हुई थी जिन्होंने पहली मुलाकात पर उनसे पूछा कि क्या आप गुरु नानक देव जी हैं क्योंकि उन्होंने गुरु नानक देव जी को नहीं देखा था। उन्होंने गुरु नानक देव जी के लिए एक बड़ा सा चोला (एक पहनने का वस्त्र) बनाया था जिसमे 52 कलियाँ थी ये चोला उन्होंने उनके बारे में सुनकर कि उनका शरीर थोडा भारी है ये वस्त्र थोडा बड़ा बनाया था। माता की भावनाओं को देखते हुए गुरु साहिब ने ये चोला उनसे लेकर पहन लिया। गुरु साहिब जब ग्वालियर के किले से मुक्त किये गए तो उन्होंने यही चोला पहन रखा था जिसकी ५२ कलियों को पकड़ कर किले की जेल में बंद सारे ५२ राजा एक एक कर बाहर आ गए, तभी से गुरु हरगोबिन्द साहिब जी “दाता बन्दी छोड़” कहलाये।


 


 


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