सावन में पहली बार विश्व प्रसिद्ध भोरमदेव मंदिर के गर्भगृह में जड़ा ताला, कोरोना संकट में केवल दर्शन की अनुमति


Report manpreet singh 


Raipur chhattisgarh VISHESH :महादेव का प्रिय महीना सावन की शुरुआत भी सोमवार से हो गई है। सावन के पहले सोमवार आज शिवालयों में भक्तों ने दूर से ही भगवान भोलेनाथ के दर्शन किए। 


कवर्धा, देवशनयी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के क्षीरसागर में पहुंचने के बाद अब सृष्टि का संचालन देवों के देव महादेव कर रहे हैं। देवउठनी एकादशनी तक वे चार महीने सृष्टि का भार उठाएंगे। वहीं महादेव का प्रिय महीना सावन की शुरुआत भी सोमवार से हो गई है। सावन के पहले सोमवार आज शिवालयों में भक्तों ने दूर से ही भगवान भोलेनाथ के दर्शन किए। शिवालयों में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए सीमित संख्या में जल अर्पण किया। शिव भक्तों ने बेल पत्र चढ़ाकर पूजा की।


इस बार सावन में 5 सोमवार आएंगे जिसमें शिवभक्त महादेव को जल अपर्ण करेंगे। हालांकि सावन का पूरा महीना ही शिवजी को जल अर्पण करने सर्वोत्तम माना जाता है। इस बार खास यह है कि सावन की शुरुआत भी सोमवार से हुई है। सोमवार को रक्षाबंधन के दिन ही सावन खत्म होगा। सावन को लेकर शहर के शिवालयों में भी तैयारी की गई है।



 भोरमदेव मंदिर के गर्भगृह में जड़ा ताला 


कवर्धा जिले के प्राचीन भोरमदेव मंदिर में पहली बार सावन के महीने में श्रद्धालुओं की भीड़ ही नहीं है। छत्तीसगढ़ के खजुराहो के नाम से विख्यात भोरमदेव मंदिर पूरी तरह से सुना-सुना है, गिनती के भक्त ही भगवान शिव के दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं। हर वर्ष यहां पर श्रद्धालुओं की लंबी कतार लगती थी, लेकिन इस बार नहीं। यहां पर जलाभिषेक की अनुमति नहीं है साथ ही यहां पर न नारियल चढ़ा सकते हैं न ही फूल। गर्भगृह के दरवाजे पर कोरोना संक्रमण के चलते ताला जड़ दिया गया है। ऐसे में भक्त बाहर से ही दर्शन करके लौट रहे हैं। इस बार कांवरियों को भी पद यात्रा कर जल अभिषेक की अनुमति नहीं है जिसके कारण भोरमदेव मंदिर में सन्नटा पसरा है।


सोशल डिस्टेंसिंग का किया पालन 


कोरोना संक्रमण को देखते हुए दुर्ग-भिलाई के मंदिरों में भी भीड़ लगाने की बजाए सोशल डिस्टेसिंग के साथ जल अर्पण करने की व्यवस्था की गई। मान्यता है कि देवशयनी एकादशी के दिन से भगवान विष्णु शेषनाग की शैय्या पर सोने चले जाते हैं। जिसके प्रभाव से मांगलिक कार्य नहीं होते। चार महीने तक विवाह के अलावा देवी-देवताओं की प्राण-प्रतिष्ठा, यज्ञ-हवन, संस्कार आदि भी नहीं होंगे।


सावन में अपर्ण करें जल


पंडितों के मुातिबिक सावन भर में भोलनाथ को केवल जल अर्पण करने से ही वे खुश हो जाते हैं। कहा जाता है कि समुद्र मंथन जब हुआ था तब सबसे पहले उसमें से विष निकला। जिसके प्रभाव से पूरी सृष्टि ही खत्म हो जाती। तब देव और दानव महादेव के पास पहुंचे। महादेव ने उस विष को पी कर कंठ में रख लिया। विष के प्रभाव से उनका कंठ नीला पड़ गया और शरीर में जलन होने लगी। तब सावन का महीना चल रहा था। उस वक्त तीनों लोक से देवी-देवता और सभी लोगों ने उन पर लगातार जल डालना शुरू किया जिससे उनके तन को ठंडक मिली। तब से ही सावन में शिवजी को जल अर्पण करने का खास महत्व है।


वचन पूरा करने गए क्षीरसागर


भागवताचार्य के अनुसार भगवान विष्णु के चार माह तक क्षीरसागर में विश्राम के पीछे एक कथा यह भी प्रचलित है कि वामन रूप में भगवान विष्णु ने राजा बलि से तीन कदम जमीन मांगी थी, जिसमें पहले कदम में उन्होंने पूरी धरती, दूसरे में आकाश और स्वर्ग लोक नाप लिया और तीसरा कदम रखने के लिए जगह मांगी तो राजा बलि ने अपना सिर उनके कदमों में रख दिया। जिसके बाद प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें वरदान मांगने को कहा। राजा बलि ने प्रभु को अपने साथ रहने का वरदान मांगा। तभी माता लक्ष्मी ने राजा बलि को भाई बनाकर भगवान विष्णु को इस वचन से मुक्त करा लिया, लेकिन भगवान ने चार महीने तक उनके साथ पाताल लोक में रहने का वचन दिया। जिसे निभाते हुए वे देवशयनी एकादशी के बाद क्षीरसागर में राजा बलि के पास चले जाते हैं।


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