Report manpreet singh
Raipur chhattisgarh VISHESH : अब तो मौत भी महंगी, चिता की लकड़ी 800 क्विंटल, कंडा 500 सैकड़ा शहर के श्मशानघाटों पर अब चिता की लकड़ी भी आम आदमी की पहुंच से बाहर निकलती जा रही है। गरीबों के लिए अब मौत भी महंगी हो गई है। 800 रुपए क्विंटल में गीली लकड़ी लेकर अंतिम क्रिया करने की मजबूरी है। एक शव के लिए तीन से साढ़े तीन क्विंटल लकड़ी यानी सीधे-सीधे 2800 रुपए और 500 रुपए सैकड़ा हिसाब से कंडा, इसके अलावा रॉल, घी मिलाकर कुल 3500 रुपए का खर्च बैठ रहा है, जबकि काेरोनाकाल से पहले इससे आधी रकम में अंतिम क्रिया निपट जाती थी। स्वयंसेवी संस्थाओं ने गोबर से लकड़ी बनाने की मशीन लगाकर आम आदमी को 2100 रुपए मे इको फ्रेंडली अंतिम संस्कार की जुगत लगाई, पर बारिश के चलते यह सिस्टम अभी
रायपुर शहर के श्मशानघाटों पर अब चिता की लकड़ी भी आम आदमी की पहुंच से बाहर निकलती जा रही है। गरीबों के लिए अब मौत भी महंगी हो गई है। 800 रुपए क्विंटल में गीली लकड़ी लेकर अंतिम क्रिया करने की मजबूरी है। एक शव के लिए तीन से साढ़े तीन क्विंटल लकड़ी यानी सीधे-सीधे 2800 रुपए और 500 रुपए सैकड़ा हिसाब से कंडा, इसके अलावा रॉल, घी मिलाकर कुल 3500 रुपए का खर्च बैठ रहा है, जबकि काेरोनाकाल से पहले इससे आधी रकम में अंतिम क्रिया निपट जाती थी। स्वयंसेवी संस्थाओं ने गोबर से लकड़ी बनाने की मशीन लगाकर आम आदमी को 2100 रुपए मे इको फ्रेंडली अंतिम संस्कार की जुगत लगाई, पर बारिश के चलते यह सिस्टम अभी बंद पड़ गया है। Also Read - तीन महीने में ही भर गए मौत के बहीखाते, निगम ने काटी पर्ची गोबर से बनी लकड़ी का 2100 रुपए सेवा शुल्क राजधानी में आम आदमी को इको फ्रेंडली तरीके से दिवंगतों की अंतिम क्रिया कराने पेड़ों की लकड़ी की जगह गोबर से लकड़ी बनाने की मशीनें कुछ स्वयंसेवी संस्थाओं ने लगाई है। गोकुलनगर, देवेंद्रनगर में 2100 रुपए सेवा शुल्क के साथ जरूरमंदों को यह सेवा उपलब्ध कराई जा रही है, जिसमें गोबर की लकड़ी होने से पर्यावरण को नुकसान नहीं होता। इसकी राख को नदियों में विसर्जित करने पर यह मछलियों के भोजन का काम आती है। हरे-भरे पेड़ पौधों को काटने की जरूरत इसमें नहीं पड़ती। सबसे बड़ी बात लकड़ी और कंडे खरीदने में लगने वाले खर्च की तुलना में यह काफी किफायती है। गोकुलनगर में सिस्टम बंद, डूंडा अमलेश्वर में मशीन जल्द l गोबर से लकड़ी बनाने वाली मशीन गोकुलनगर में लगाई गई है, पर बारिश के मौसम में यह मशीन बंद पड़ी है। मौसम खुलने के बाद दोबारा इससे गोबर से लकड़ी बनाने का काम शुरू हो जाएगा। डूंडा और अमलेश्वर में इसी तरह की मशीन आने वाले दिनों में लगाई जाएगी। अग्रसेन गोधाम सामाजिक सेवा समिति के अध्यक्ष अविनाश कुमार अग्रवाल ने बताया, बादल छंटते ही इन स्थानों पर आम आदमी की सुविधा के लिए मशीन लगाई जाएगी। इसमें गोबर का उपयोग करते हुए लकड़ी बनेगी, जिसका उपयोग अंतिम संस्कार के समय जरूरतमंद कर सकते हैं। पर्यावरण के अनुकूल सिस्टम को रायपुरवासियों ने काफी पसंद किया है। रियायती दर पर लकड़ी नहीं, निगम का वादा फिस्स शहरी सरकार द्वारा मारवाड़ी श्मशानघाट, महादेवघाट में आम आदमी को परिजनों के अंतिम संस्कार के समय नगर निगम की ओर से रियायती दर पर लकड़ी, कंडा उपलब्ध कराने नगर निगम के बजट में प्रावधान किया गया था।
पूर्व महापौर प्रमोद दुबे द्वारा इसके लिए महिला स्व-सहायता समूहोें को वन विभाग के माध्यम से लकड़ी उपलब्ध कराने की योजना भी बनाई गई, पर पांच साल में न तो इस योजना पर रत्तीभर काम हुआ और न ही वर्तमान महापौर एजाज ढेबर 9 महीने के कार्यकाल में इसे अमल में ला पाए। बारिश में लकड़ी गीली बचाने के इंतजाम नाकाफी मारवाड़ी श्मशानघाट, महादेवघाट सहित शहर के अन्य मुक्तिधामों का आलम ये है कि यहां अंतिम क्रिया के लिए जो लकड़ी टाल आम आदमी के लिए आसानी से परिसर के आसपास उपलब्ध हैं, वहां बारिश के मौसम में लकड़ियों को गीला होने से बचाने का पर्याप्त इंतजाम नहीं है। शेड की व्यवस्था से लेकर लकड़ी, कंडे रखने की जगह पर पानी की धार जरा सी बारिश में लकड़ी को गीला करने का काम करती है। गीली लकड़ी का वजन भी ज्यादा होता है, इसलिए टाल संचालक ध्यान नहीं दे रहे। दूसरी बड़ी दिक्कत ये है, इक्का दुक्का लकड़ी टाल मुक्तिधाम में होने से मोनोपली चलती है। भुक्तभोगी परिवार अपने परिजन के बिछुड़ने के गम में वैसे ही दुखी रहता है, ऊपर से बढ़े हुए दाम पर लकड़ी खरीदना उसकी मजबूरी रहती है