Report manpreet singh
Raipur chhattisgarh VISHESH : सनातन धर्म में मनुष्य के लिए 5 तरह के यज्ञ (ब्रह्मयज्ञ, पितृयज्ञ, देवयज्ञ, भूतयज्ञ और मनुष्ययज्ञ) करने का विधान बताया गया है. इन 5 यज्ञों के साथ ही मनुष्य के ऊपर तीन तरह के ऋण भी बताए गए हैं. इन तीनों ऋणों में से पितृ ऋण सबसे प्रमुख माना गया है. पितृ ऋण से मुक्ति पाने का सबसे उत्तम उपाय बिहार के गया में श्राद्ध-पिंडदान करना बताया गया है. इसके अलावा ओडिशा के जाजपुर और आंध्रप्रदेश के पीठापुरम में भी पितरों की संतुष्टि के लिए श्राद्ध किया जाता है. इसलिए इन तीनों को त्रिगया पितृ तीर्थ नाम से भी जाना जाता है.
ऐसा माना जाता है कि गयासुर नामक असुर ने ब्रह्मा जी को यज्ञ के लिए अपना शरीर दिया था. जिसके फलस्वरूप गयासुर नामक असुर के मुंह वाले हिस्से पर बिहार का गया पितृ तीर्थ, नाभि वाले हिस्से पर जाजपुर का पितृ तीर्थ और गयासुर के पैर वाले हिस्से पर राजमुंदरी का पीठापुरम पितृ तीर्थ है.
गया तीर्थ के बारे में कहा जाता है कि गयासुर नामक एक अत्यंत पराक्रमी असुर था. कालांतर में यह गयासुर नामक असुर लोगों की भलाई के लिए ब्रह्मा जी के कहने पर अपना शरीर यज्ञ के लिए दिया था. ब्रह्मा जी ने सबसे पहले गया को श्रेष्ठ तीर्थ मानकर यज्ञ किया था.
ओडिशा का जाजपुर नाभि गया क्षेत्र माना जाता है. ऐसा कहा जाता है कि ब्रह्मा जी के कहने पर गयासुर ने यज्ञ के लिए जब अपना शरीर दिया था तो इसी जगह पर उसकी नाभि थी. यहां का मुख्य कर्म श्राद्ध और तर्पण है.
आंध्रप्रदेश के पीठापुरम को मूल रूप से पिष्टपुरा कहा जाता है. यज्ञ के लिए शरीर देने पर पीठापुरम में ही गयासुर का पैर था. इसलिए इसे पद गया नाम से भी जाना जाता है. पीठापुरम त्रिगया क्षेत्रों में से एक है.