40 करोड़ खर्च कर न कोई प्रोजेक्ट न कोई आइडिया - प्रदेश में 400 अटल लैब







 



रिपोर्ट मनप्रीत सिंह

रायपुर छत्तीसगढ़ विशेष : 



  • अटल टिकरिंग लैब में उपकरण तो हैं पर इसे अाॅपरेट करने वाले नहीं, इसलिए चढ़ी धूल

  •  राजधानी से लगे स्कूलों में लैब खुल गई, लेकिन बच्चों को इसकी जानकारी तक नहीं दी


 

रायपुर  . राजधानी रायपुर समेत प्रदेश के स्कूलों में इनोवेशन को बढ़ावा देने के लिए 5 साल पहले अटल टिंकरिंग लैब शुरू की गईं। 40 करोड़ रुपए खर्च कर 5 साल में इनकी संख्या 400 के अासपास पहुंच गईं, लेकिन इन प्रयोगशालाओं की केवल गिनती ही बढ़ रही है। भास्कर टीम ने पाया कि आधे से भी ज्यादा स्कूलों में लैब स्थापित कर दी गईं, लेकिन ताले ही नहीं खुल पाए हैं। जहां लैब चालू हैं, उनमें कोई ऐसा प्रयोग, इनोवेशन या अाइडिया जनरेट नहीं हुअा जिसकी धमक राष्ट्रीय स्तर पर हो सके।



भास्कर ने जब अटल टिंकरिंग लैब का संचालन करने वाले स्कूलों की पड़ताल की तो कई चौंकाने वाली बातें सामने आईं। कई स्कूल ऐसे मिले जहां उपकरणों को चलाने के लिए तकनीकी स्टॉफ ही नहीं है, जबकि उपकरण अत्याधुनिक हैं। इसी कमी की वजह से कई स्कूलों में लैब खुल गईं, छोटे-मोटे प्रैक्टिकल हो रहे हैं, लेकिन उपकरणों को किसी ने छुअा नहीं है। केवल राजधानी ही नहीं, प्रदेश के अलग-अलग स्कूलों मेंे यही स्थिति दिख रही है। जिन स्कूलों में अटल लैब स्थापित किए गए हैं वहां के बच्चों को इसकी जानकारी नहीं दी गई है। यह सिर्फ खानापूर्ति के लिए ही लगा दी गई है। इतना ही नहीं, स्कूलों और इंस्ट्रूमेंट देने वाली कंपनियों के बीच एमओयू हुअा था जिसमें बच्चों और टीचर्स को उपकरण चलाना सिखाने के लिए कंपनी को एक एक्सपर्ट भेजना था। 


कंपनियों ने उपकरण तो भेज दिए, लेकिन पलटकर नहीं देखा कि लैब में हो क्या रहा है। इस वजह से कुछ स्कूलों में बच्चों ने जो प्रोजेक्ट बनाए थे, वह भी रद्दी हो रहे हैं। यही वजह है कि अटल टिंकरिंग योजना में शामिल 400 में से केवल अाधा दर्जन स्कूलों ने ही राष्ट्रीय स्तर पर प्रयोगों को लेकर परफार्म किया है। इसमें राजधानी का जेअार दानी गर्ल्स स्कूल तथा बिलासपुर के मल्टीपरपस गवर्नमेंट स्कूल समेत कुछ अन्य शामिल हैं। इन्हीं के प्रोजेक्ट राष्ट्रीय स्तर तक जा पाए हैं। 


10 लाख का अनुदान
स्कीम के तहत चयनित स्कूलों को लैब व इनोवेशन के लिए 20 लाख रुपए देने का प्रावधान है। यह राशि उन्हें पांच साल में मिलना है। िजन स्कूलों को स्कीम में चुना गया उनमें अधिकांश को पहली किश्त के रूप में 10 से 12 लाख मिल चुके हैं। हालांकि, पहली किश्त के बाद हर साल फिर कुछ ना कुछ राशि मिलनी चाहिए थी, लेकिन केंद्र से बचा हुआ फंड आ ही नहीं रहा है। 


कई स्कूल कतार में
अटल लैब स्कीम का दायरा बढ़ रहा है। कई स्कूल अब भी लैब मांग रहे हैं। लैब के लिए शर्त ये है कि स्कूल के पास 1000 से 15 सौ वर्गफीट का हॉल होना चाहिए। साथ ही विज्ञान मेलों में स्कूल का प्रदर्शन, इनोवेशन में छात्रों की अभिरुचि आदि अन्य पहलू भी देखे जाने हैं। इसके बाद ही मानकों पर खरा उतरे स्कूल को लैब की परमिशन मिलती है।


स्किल्ड स्टॉफ की कमी 
छत्तीसगढ़ के 252 सरकारी, 33 केंद्रीय और 79 प्राइवेट स्कूलों में अटल टिंकरिंग लैब बनाई गई हैं। 10 लाख के फंड में स्कूलों को सेमीनार, ओरिएंटेशन प्रोग्राम, छात्रों के लिए शैक्षणिक भ्रमण जैसी गतिविधियां भी करनी थी। लेकिन अधिकांश स्कूलों में इस तरह की एक्टिविटी न के बराबर हो रही है। लैब का फायदा छात्रों को मिलें इसके लिए स्कूलों में तकनीकी जानकार होने चाहिए लेकिन इनकी भी कमी है। 


1. जेएन पांडेय गवर्नमेंट स्कूल रायपुर इंचार्ज गए तो प्रयोगशाला में धूल 
राजधानी रायपुर के बड़े सरकारी स्कूल जेएन पांडेय मल्टीपरपस गवर्नमेंट स्कूल में 600 से अधिक छात्र हैं। यहां अटल टिंकरिंग लैब शुरू में रेगुलर खुली लेकिन इंचार्ज के ट्रांसफर के बाद महीने में दो-तीन बार ही खुल रही है। भास्कर टीम ने लैब के भीतर उपकरण और कुर्सी टेबलों पर जमी धूल देखी। लैब के आसपास कबाड़ भी जमा था। बच्चों के प्रोजेक्ट बेतरतीब पड़े दिखे। कुछ छात्रों के अनुसार प्रोजेक्ट पर कोई प्रैक्टिकल या मॉडल नहीं बना। उपकरणों के बारे में तकनीकी संस्थान के छात्र बता जाते हैं, लेकिन अाइडिया और इनोवेशन पर कुछ नहीं हुअा। 



2. जेआर दानी शासकीय गर्ल्स स्कूल प्रदर्शन ठीक पर लैब अधिकतर बंद
भास्कर टीम बीते गुरुवार की सुबह 12 बजे दानी गर्ल्स स्कूल पहुंची। लैब में ताला लगा हुआ था। हालांकि, इस स्कूल के छात्राओं के प्रोजेक्ट राष्ट्रीय स्तर पर जा चुके हैं। लेकिन यहां भी नियमित तौर पर ओरिएंटेशन नहीं है। प्रयोगशाला में छात्राओं की उपस्थिति नाममात्र की या अनियमित ही है। यहां तक कि लैब संचालित करने के लिए यहां भी तकनीकी स्टॉफ नहीं है। बच्चों को टीचर उन्हीं उपकरणों के बारे में बताते हैं जिनका वे उपयोग कर चुके हैं या जिनके बारे में उन्हें जानकारी है। इस वजह से कई उपकरण अब भी धूल खा रहे हैं।





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