कैलाश-मानसरोवर यात्रा मार्ग के नाम से प्रसिद्ध धारचूला से लिपुलेख (चीन सीमा) तक सड़क सम्पर्क पूर्ण , अब 90 किमी दुर्गम रास्ते का सफर हुआ आसान



रिपोर्ट मनप्रीत सिंग



रायपुर छत्तीसगढ़ विशेष :  केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग और सूक्ष्म, लघु और मंझौले उद्यम मंत्री नितिन गडकरी ने कैलाश-मानसरोवर यात्रा मार्ग के नाम से प्रसिद्ध धारचूला से लिपुलेख (चीन सीमा) तक सड़क सम्पर्क पूर्ण किए जाने के लिए सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के प्रयासों की सराहना की है। रक्षा मंत्री  राजनाथ सिंह ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पिथौरागढ़ से वाहनों के पहले काफिले को रवाना कर आज इस सड़क का उद्घाटन किया।




श्री गडकरी ने कहा कि सीमावर्ती गांवों को आखिरकार पहली बार सड़कों से जोड़ा गया है और कैलाश मानसरोवर के यात्री अब 90 किलोमीटर दुर्गम रास्ते से बच सकते हैं और वाहनों के जरिए चीन सीमा तक जा सकते हैं। धारचूला-लिपुलेख मार्ग, पिथौरागढ़-तवाघाट- घटियाबगड़ मार्ग का विस्तार है। यह घटियाबगड़ से शुरु होकर कैलाश मानसरोवर के प्रवेशद्वार लिपुलेख दर्रे पर समाप्त होता है। यह 80 किलोमीटर लम्बा मार्ग है जिसकी ऊंचाई 6000 फुट से 17,060 फुट तक है। इस परियोजना के समाप्त होने के साथ ही कैलाश मानसरोवर यात्रा के श्रद्धालु अब जोखिम भरी अत्याधिक ऊंचाई से होकर गुजरने वाले दुर्गम रास्ते से बच सकेंगे और यात्रा में लगने वाले समय में भी अनेक दिनों की कमी आएगी।

वर्तमान में सिक्किम या नेपाल मार्गों से होने वाली कैलाश मानसरोवर की यात्रा में दो से तीन हफ्ते का समय लगता है। लिपुलेख मार्ग में 90 किलोमीटर का ऊंचाई वाला रास्ता था और बुजुर्ग यात्रियों को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था। अब यह यात्रा वाहनों के माध्यम से पूरी की जा सकती है।

 इस सड़क का निर्माण कार्य अनेक समस्याओं के कारण बाधित हुआ। निरंतर हिमपात, ऊंचाई पर खड़ी ढाल और अत्यंत कम तापमान ने कार्य को पांच महीने तक सीमित कर दिया। कैलाश मानसरोवर यात्रा जून से अक्टूबर के दौरान की जाती है और इसी समय स्थानीय लोग और उनके लॉजिस्टिक्स साथ ही साथ व्यापारियों की आवाजाही (चीन के साथ व्यापार के लिए) होती है इस तरह निर्माण के दैनिक घंटों में और कमी करनी पड़ी।

 इसके अलावा, पिछले कुछ वर्षों से कई बार यहां बाढ़ और बादल फटने की घटनाएं हुईं, जिसके कारण भारी नुकसान हुआ। शुरुआती 20 किलोमीटर में, पहाड़ों में कठोर पथरीले चट्टान हैं और ये चट्टान सीधे खड़े हैं, जिनके कारण बीआरओ को अनेक जवानों को जान गंवानी पड़ी और काली नदी में गिरने से 25 उपकरण भी बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए।

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